Saturday, October 10, 2009

My musings from the past....

1. This was a write-up which I won't term as a poem now. I had written it in 1996 when I was a teenager. I don't exactly remember what mind set I had when I wrote this poem but as I read it today again in my diary, it shows some kid of insecurity; insecurity of loosing someone special. This write-up reflects the haywire and confused thoughts that we have in the sleepy state just before we finally give-in to long hours of sleep.

बहुत करीब रहते हो तुम मेरे
कि जब भी मैं तुम्हारे बारे में सोचती हूँ
तुम आ जाते हो मेरे पास
मेरे बहुत करीब

हर निशा के ढलने से पहले
नींद की परी का जादू मुझपर चढ़ने से पहले
तुम आते हो मेरे ख्यालों में
के मैं सोचती हूँ तुम्हारे बारे में

सोचती हूँ कि तुम कैसे हो
सोचती हूँ कि तुम क्या हो
इक पहेली जो सुलझ नहीं सकती
समझी जा सकती है

या इक तारीफ जो की नहीं जा सकती
महसूस कराई जा सकती है
या इक हक़ीकत जो बयान नहीं की जा सकती
समझाई जा सकती है

या फिर एक सपना जो पूरा नहीं हो सकता
या इक प्यार जो मेरा नहीं किसी और का है
नहीं ये नहीं हो सकता

तुम सपना नहीं हक़ीक़त हो
तुम मेरे हो सिर्फ़ मेरे
और ये हक़ीक़त है
कि हमारा प्यार सपना नहीं है

बस इन्ही विचारों के साथ
हर आधीरात को
मैं अपने अक्षुओं को नम कर लेती हूँ
खुशी से या गम से नहीं जानती

अपने पर उस परी का जादू चढ़ा लेती हूँ
जिसके सहारे तुम आ सको
मेरे ख्वाबों में
इक फरिश्ते के रूप में

"ठीक ही कहा था मैंने
बहुत करीब रहते हो तुम मेरे
की तुम्हे याद करते ही
तुम आ जाते हो मेरे ख्यालों में

ख्वाबों में अपना हक़ जताने
न जाने क्यों, शायद तुम बता सको
हक़ीक़त में ना सही ख्यालों में ही सही
ख्वाबों में ही सही "

2. Just another one.... Funny but even this poem reflects lot of insecurity :( and I realized just now that its a nice habit to write a diary. I think I should restart again.

कर मुनासिब ऐसा
के हम-तुम जुड़ा ना हो
एक दूजे के संग जीए
जान भी जाए तो संग हो एक दूजे का

जब हम पहली बार मिले
तो ऐसा न सोचे थे
के संग रहने का वादा कर
हम प्यार कर बैठेंगे

जिंदगी ने बहुत गम दिए
अब तुम न दगा देना
जब कभी भी हम खता करें
तो हमें ज़रूर माफ़ कर देना

हमें गम-ए-ज़िंदगी से शिकवा नही
गर तुम हमारे साथ रहो
हम से इक वादा ले लो
के हम तुम्हारे हैं सदा के लिए

3. Ek tara.... yet another one

इक तारा जो आसमाँ से उतरा
जिस के आने से आसमाँ सूना हो गया
इक तारा जो धरती पर जन्मा
और सबके दिलों पर छा गया
वो तारा तुम हो, इसमे कोई शक नहीं
हम पर ऐतवार न हो तो ज़रा नज़रें घूमाओ
सबकी आखों में एक आईना है
जो इस बात का प्रतिबिंब है

4. Pathos - 1

आपकी इस बात को सुन कर दिल भर आया
की इतना भी हक़ ना रहा हमारा के आपको याद कर सके

हम जानते हैं की आपकी ज़िंदगी में और भी रंग हैं
पर हम भी उन रंगों के एक छोटे से अंग हैं

कभी जुदा न कीजिएगा अपनी ज़िंदगी से
आज ख्यालों से निकाल दिया कल निकल न देना ज़िंदगी से

हम जीते जी बिखर जाएँगे कहीं मर न जाएँ
पर हम ख़्याल रखेंगे हमारी मौत आपके सर ना आए

5. Pathos - 2

हमने ज़िंदगी को अपना कर क्या खता किया था
जो आज हमारी ज़िंदगी ने हमें तन्हा छोड़ दिया

तन्हाई में जब इश्क़-ए-गम फ़रमाया
तो भी भी कम्बख़्त बेवफा निकला

आज हम मौत की फरियाद ले आपके पास हैं
ज़िंदगी से तंग हो आपके पास हैं

क्या इतना भी हक़ नहीं
के आपसे अपनी आज़ादी माँग सकें

Disclaimer as always: None of the musings above show any specific mood. Its just that when I write in Hindi, its generally in a sad tone... I dunno why!!! I should stick to English I guess.... :) All the above write-ups are 10 -12 years old... Shit I feel I am old... Hence I really do not remember what mood triggered each of them!!! :) Just thought I should put these on my blog as well...